jyotish shastra in hindi

Why Do We Need Astrology Today?
Astrology

ज्योतिष-शास्त्र छठा वेदांग है; जो एक ओर भविष्य में घटित होने वाली संभावनाओं का पूर्वानुमान लगाता है, वहीं दूसरी ओर भूतकाल में घटित किसी आकस्मिक घटना पर प्रकाश डालते हुए उसकी कारण-सहित व्याख्या करता है। ‘ज्योतिष’ शब्द का संधि-विच्छेद करें तो इसका अर्थ सुगमता से समझा जा सकता है– “ज्योतिष = ज्योति + ईश; अर्थात् ईश्वर की ज्योति या ईश्वरीय प्रकाश; जिसके द्वारा जीवन में भूत, भविष्य और वर्तमान को जाना जा सकता है। समस्त मनुष्य जाति के जीवन को सौभाग्यशाली एवं सुखमय बनाने के उद्देश्य से ही वेदों औंर पुराणों में ज्योतिष को एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है।

“वह विज्ञान, जो ग्रहों के आकार, स्थिति, भ्रमण,काल औंर जीवों पर पड़ने वाले उनके प्रभावों को ध्यान में रखते हुए मनुष्यों एवं राष्ट्रों के लिए भविष्य में होने वाली घटनाओं की भविष्यवाणी तथा भूतकाल में हो चुकी घटनाओं के विश्लेषण द्वारा मनुष्यों तथा पृथ्वी पर रहने वाले अन्य जीवों की प्रकृति के अनुरूप उनमें होने वाले शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक परिवर्तनों को स्पष्ट करता है, उसे ही ज्योतिष-शास्त्र कहते हैं।”
ज्योतिष-शास्त्र पर ऋग्वेद में तीस, यजुर्वेद में चौवालीस तथा अथर्ववेद में एक सो बासठ श्लोक हैं। प्राचीन काल के अन्य शास्त्रों की भांति ही ज्योतिष-शास्त्र भी श्रुति औंर स्मृति परंपरा पर आधारित है।

ज्योतिष-शास्त्र के तीन प्रमुख स्कंध हैं (स्कंधत्रय )–1. सिद्धांत या गणित ज्योतिष, 2. संहिता या मुंडेन ज्योतिष, और 3. होरा या फलित ज्योतिष।
सिद्धांत या गणित ज्योतिष के अंतर्गत सूर्यादि ग्रहों, भचक्र एवं नक्षत्रों आदि की स्थिति, उनकी गतियों के परिवर्तन के आधार पर गणना की जाती है, और इस पर आधारित पंचांग/ जंत्री आदि बनाए जाते हैं। इसे ‘खगोलशास्त्र’ भी कहते हैं।

‘होरा’ शब्द का उद्भव ‘अहोरात्र’ से हुआ है, जिसका अर्थ है–रात औंर दिन का संपूर्ण समय। होरा या फलित-ज्योतिष के अंतर्गत समय की गणना द्बारा किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली बनाकर, उसके जीवन की विगत में घटित तथा आगामी संभावित घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।
संहिता के अंतर्गत, नक्षत्रों की स्थिति और उनमें होने वाले परिवर्तनों द्बारा मौसम, महामारी, भूकंप, बड़े राजनीतिक परिवर्तन आदि का पूर्वानुमान किया जाता है। अर्थात् इसमें व्यक्ति-विशेष का नहीं, अपितु ग्रह-नक्षत्रों की आकाशीय स्थिति में परिवर्तन से, सामूहिक रुप से सृष्टि ( मनुष्य एवं अन्य सभी निर्जीव व सजीव प्राणियों) पर पड़ने वाले ज्योतिषीय प्रभावों का अध्ययन किया जाता है।
आधुनिक समय में कई विद्बज्जन ज्योतिष के स्कंधपंच का प्रयोग करते हैं। इनमें तीन स्कंध तो वही हैं- सिद्धांत, संहिता और होरा। प्रश्नशास्त्र और शकुनशास्त्र, और जोड़े गए हैं।

ज्योतिष शास्त्र के कुछ प्रमुख पौराणिक ग्रंथ इस प्रकार हैं–

1. सिद्धांत स्कंध — सूर्य-सिद्धांत, , सिद्धांत-शिरोमणि, सिद्धांत तत्व विवेक, पंचसिद्धांतिका, सिद्धांत शेखर, आर्यभटीय आदि।
2. होरा स्कंध — वृहत्पाराशर होराशास्त्र, वृहत्जातक, जातक-पारिजात, फलदीपिका, सारावली, जैमिनीय-सूत्रम् आदि।
3. संहिता स्कंध — गर्ग संहिता, वशिष्ठ संहिता, नारद संहिता,, आर्यग्रंथ, वृहत्संहिता ( वराहमिहिर कृत), अद्भुत सागर आदि।
4. प्रश्नशास्त्र– प्रश्नशिरोमणि (रुद्रदेव), भृगु मूक प्रश्नशिरोमणि, प्रश्न फलदीपिका आदि।
5. शकुनशास्त्र — शकुन पद्धति, वृहत्पाराशर होराशास्त्र आदि।

वर्तमान में वास्तुशास्त्र को ज्योतिष का छठा स्कंध कहा जाने लगा है, जबकि पौराणिक काल में वास्तुशास्त्र को पाँचवां वेद कहा गया है। वास्तुशास्त्र, ज्योतिष का ही अभिन्न अंग है। चारों ही वेदों – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद – में वास्तु का वर्णन है; परन्तु वास्तु के सर्वाधिक सिद्धांत अथर्ववेद में ही हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार, “निवास-योग्य स्थान ही वास्तु है”। प्रकृति के लाभोंं को, अल्प प्रयास से ही, संपूर्णता में प्राप्त करना ही वास्तुशास्त्र का आधार है।

“यत् पिण्डे तत् व्रह्माण्डे” के अनुसार, निवास-स्थान पर प्रकृति के पंचमहाभूतों ( पृथ्वी, अग्नि, वायु, जल एवं आकाश ) का संतुलन बनाकर ही मनुष्य – जीवन में तीनों स्तरों –शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्तर — पर उन्नति प्राप्त की जा सकती है, अन्यथा नहीं।
मत्स्य पुराण, समरांगण सूत्रधार, मयमतम तथा मानसार शिल्पशास्त्र आदि वास्तुशास्त्र के प्रामाणिक पौराणिक ग्रंथ हैं।

ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन मनुष्य-जाति के सर्वांगीण विकास हेतु अत्यावश्यक है, क्योंकि यह शारीरिक, मानसिक औंर आध्यात्मिक स्तरों पर उन्नति प्राप्त करने में सहायक है। इसकी सहायता से व्यक्ति, प्रकृति से सामंजस्य स्थापित कर, जीवन को समृद्ध बनाने हेतु अपने लाभजनक प्रयासों को अधिकतम कर सकता है तथा शिक्षा, व्यवसाय, विवाह आदि मूलभूत बिंदुओं हेतु भविष्य की योजनाओं का निर्माण कर सकता है।अत: प्रत्येक व्यक्ति को ज्योतिषीय मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़ती है।

महर्षि पाराशर ने अपने “वृहत्पाराशर होराशास्त्र” में उत्तम ज्योतिषी के गुण एवं विशेषताएं बताईं हैं; जो इस प्रकार हैं — गणितीय योग्यता, शब्दशास्त्र में परिश्रमी, न्यायविद, बुद्धिमान, देश- दिक्कालज्ञ, जितेन्द्रिय, ऊहापोह-पटु, होरास्कंध श्रवणसम्मत आदि।
आधुनिक भारत में, वैदिक ज्योतिष के प्रणेता गुरु श्री के. एन. राव ने वराहमिहिर द्बारा बताई गई उत्तम ज्योतिषी की विशेषताओं को और स्पष्ट किया है। इनके अनुसार, ज्योतिषी को हृदय से पवित्र, कार्यक्षम, वाक्पटु, मेधावी, दृढ़-संकल्पशील, शांत अंतर्मन वाला, निर्भीक, शकुन एवं संकेतों का जानकार, निर्व्यसनी, यंत्र-मंत्र-तंत्र का ज्ञाता, आध्यात्मिक एवं आदर्श मार्गदर्शक होना चाहिए। तथा देश, काल व पात्र के अनुरूपही उसेज्योतिष के सिद्धांतों का फलन जानना चाहिए।

ज्योतिष का ज्ञान, मनुष्य के दैनिक जीवन के विभिन्न कियाकलापों से संबद्ध है। व्यवहारिक रूप सेअत्यंत उपयोगी दिन, सप्ताह, पक्ष, माह, अयन, ऋतु एवं वर्ष का ज्ञान इसी से किया जाता है। पंचांग का लेखन भी इसी से किया जाता है, जिसमें- तिथि,वार, नक्षत्र, करण और योग – की जानकारी सारणीबद्ध रुपसे दी जाती है।जिससे वह जनसाधारण हेतु सुगम हो सके। साथ ही, ज्योतिष शास्त्र की सबसे बड़ी उपयोगिता यही है कि दैनंदिन अनिष्ट-निवारण तथा उज्ज्वल भविष्य के निर्माण हेतु यह एक मुख्य साधन है। यह जीवन के रहस्यों को अंधकार में प्रदीप्त दीपक की भांति उजागर करता है। यह ज्ञान, एक प्रकाश-स्तंभ की भांति, मनुष्यों को कर्मपथ पर अग्रसर करता है।उन्हें अकर्मणीय एवं भाग्यवादी नहीं बनाता। भाग्य के लेख को पढ़ने तथा उसे प्राप्त करने हेतु मनुष्य को कर्मरत होना ही पड़ता है, और ज्योतिषीय ज्ञान, अपार संभावनाओं से भरे भविष्य हेतु हमारा मार्गदर्शक बन जाता है।
इस प्रकार, ज्योतिष शास्त्र के अंतर्गत, भविष्य के गर्भ में छुपी संभावनाओं तथा विगत में घटित घटनाओं पर विश्लेषणात्मक दृष्टि से प्रकाश डालने हेतु, पंचांग का पठन-पाठन/ वाचन-श्रवण अपरिहार्य है। स्पष्ट मानादि के साथ;- तिथि, वार, नक्षत्र, करण, एवं योग – इन पाँचों की सारिणीयो़ को पंचांग कहते हैं। जो भी मनुष्य, यथा-समय पंचांग का ज्ञान रखता है, पाप उसे स्पर्श भी नहीं कर सकता। शास्त्रों के अनुसार, — 1. ‘तिथि’ का श्रवण करने से ‘श्री’ की प्राप्ति होती है। 2. ‘वार’ के श्रवण से आयु की वृद्धि होती है। 3. ‘नक्षत्र’ का श्रवण मनुष्य के पापों को नष्ट कर देता है। 4.’करण’ के श्रवण से कार्य की सिद्धि होती है। और, 5. ‘योग’ का श्रवण रोग-निवारक होता है।

वाल्मीकिकृत रामायण में भी श्री राम के राज्याभिषेक का मुहूर्त, गुरु वशिष्ठ जी पंचांग के अनुसार ही राज्यसभा में प्रस्तुत करते हैं। अत: ज्योतिष में रुचि रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रात:काल पंचांग का पठन- श्रवण अवश्य करना चाहिए।
🚩 राम राम 🚩

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